Do Din is about relationships
इन शहरों की अजीब फितरत है
लोग ज़्यादा होते हैं और रिश्ते कम
जो थोड़े बहुत रिश्ते हैं
उन्हें निभाने का वक़्त नहीं
गुज़ारा कमाने में इतने मसरूफ हैँ कि
फिसलती हुई ज़िन्दगी का होश नहीं
हर पल इतनी जल्दी है कि
यादगार लम्हे समेटने की फुर्सत नहीं
जब अकेले पड़ जाते हैं तो
न कोई होता है जिसका सहारा ले सकें
न ही कुछ यादें रहती हैं जिनके सहारे जी सकें
Poem by Sridhar Potlacheruvoo (Our go-to-man for all things technical)
last lines !!